जन-नायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न

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जन-नायक कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ, तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे। वे बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे थे।

कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्‍नशील रहे और संघर्ष करते रहे। उनका सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्‍ट विचार और अदम्य इच्छाशक्‍त‌ि बरबस ही लोगों को प्रभावित कर लेती थी और लोग उनके विराट व्यक्‍त‌ित्व के प्रति आकर्षित हो जाते थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। Read Full Story.

कर्पूरी ठाकुर को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न

केंद्र सरकार ने 23 जनवरी 2024 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की है।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गाँव, जिसे अब ‘कर्पूरीग्राम’ कहा जाता है, में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर के पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। 24 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया गया।

कर्पूरी ठाकुर की जाति

कर्पूरी ठाकुर के पिताजी गांव के सीमान्त किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम करते थे। कर्पूरी ठाकुर नाई जाति से थे।

कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा

कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्‍वविद्यालय से पास की।

कर्पूरी ठाकुर की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

करपुरी ठाकुर ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद के समय में उच्च स्तर पर माना जाता है। विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने गाँधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज बुलंद की।

भारत छोड़ो आंदोलन, 1942: 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। परिणामस्वरूप 26 महीने तक भागलपुर के कैंप जेल में जेल-यातना भुगतने के उपरांत 1945 में रिहा हुए।

आचार्य विनोबा भावे के साथी: करपुरी ठाकुर ने आचार्य विनोबा भावे के साथ भी मिलकर सामाजिक सुधार और सत्याग्रह में भाग लिया। उन्होंने गाँधी जी के साथी के रूप में भारतीय समाज में जागरूकता फैलाई और सामाजिक असमानता के खिलाफ उठे जाने वाले मुद्दों पर काम किया।

गाँधीवादी सिद्धांतों का पालन: करपुरी ठाकुर ने गांधीवादी सिद्धांतों का पूरा पालन किया और अहिंसा, सत्य, और स्वदेशी के मूल्यों का अनुसरण किया। उन्होंने अपने क्रियाकलाप से लोगों में सामाजिक जागरूकता और अद्वितीयता के सिद्धांत को प्रोत्साहित किया।

कर्पूरी ठाकुर का राजनीति में योगदान

कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद राजनीति में भी अपना सामंजस्यपूर्ण योगदान दिया। 1948 में आचार्य नरेन्द्रदेव एवं जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बने। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। सन् 1967 के आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त समाजवादी दल (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) (संसोपा ) बड़ी ताकत के रूप में उभरी।

1970 और 1977 में मुख्यमंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था।

1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। 1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार 24 जून, 1977 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। इसके बाद भी महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया।

फिर 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता बने।

कर्पूरी ठाकुर का बिहार राजनीति में योगदान

  • बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी।
  • राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया।
  • उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया।
  • मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया मुंगेरी लाल आयोग के तहत् दिए और 1978 में ये आरक्षण दिया था जिसमें 79 जातियां थी। इसमें पिछड़ा वर्ग के 12% और अति पिछड़ा वर्ग के 08% दिया था।

कर्पूरी ठाकुर का निधन

कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।